Sunday 24 May 2015

जातिगत आरक्षण की आग में कब तक हम अपने देश को ही जलाते रहेंगे ?

राजनीति/जातनीति की दुनिया में एक चमकते हुए धुमकेतू जैसे नेता का उदय हुआ है....नाम है 'कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला'...जिन्होने रेल की पटरियों से अपनी राजनीति/जातनीती की शुरुआत की थी और अब फिर उन्ही पटरियों पर बैठे है और पटरियों को उखाड़ने में लगे है...
नाम के आगे "कर्नल" लगा होने के कारण बड़ा अटपटा लग रहा है कि जो व्यक्ति भारतीय सेना के लिए काम किया हो, जिसने किसी जाति के लिए नहीं बल्कि पूरे देश के लिए लड़ाई लड़ी हो, वो इतनी संकीर्ण मानसिकता का कैसे हो गया....
जिसने कभी पूरे देश की जान के लिए लड़ा हो, वो ४०-५० लोगों के मरने के बाद भी ये कर रहा है?
जिस फौज में देश के हर व्यक्ति की और देश की संपदा की सुरक्षा करना सीखा हो, वो व्यक्ति हजारों लोगों को देश की संपदा को तोड़ने और आग के हवाले करने की प्रेरणा कैसे दे सकता है ?
क्या ये अपने आपको सुप्रीम कोर्ट से बड़ा समझने लगे ?
अगर हर जाति या समुदाय अपनी उचित/अनुचित मांगों को लेकर सड़क/रेल पटरी पर आ जाए और देश की संपदा को तहस नहस करने लगे तो क्या यह देश बच पाएगा ? यह भीड़ की राजनीति कब बंद होगी और लोग ये कब समझेंगे की संख्या के आधार पर हम कोई भी अनुचित मांग मनवा भी लें तो वह देश के लिए कितना घातक होगा ?
और गुर्जर भी इस बात को कब समझेंगे कि 40 से ज्यादा लोग मर गए, सैकड़ों घायल हो गए, मगर नेताजी को कुछ क्यों नहीं होता ? क्योंकि ये उस समय निकल जाते है पतली गली से, जनता को लड़ने मरने के लिए छोड़ कर.
लोग अब ये समझ लें कि नेताजी की राजनीति का मोहरा बनने और जितनी ताकत पटरीयों को उखाड़ने में लगा रहे है, उतनी अगर पढ़ाई लिखाई में लगा लें तो किसी भी आरक्षण की जरूरत नहीं पड़ेगी
#wedon'tsupportreservation